ज्यादातर क्रिकेट फैंस के लिए महेंद्र सिंह धोनी “कैप्टन कूल” के नाम से जाने जाते हैं – वो खिलाड़ी जो हमेशा शांत रहते हैं और मुश्किल मैच भी आराम से खत्म कर देते हैं। लेकिन इस शांति और भरोसे के पीछे एक सख्त अनुशासन, तय दिनचर्या और उनके पिता पान सिंह का डर और आदर छिपा है।
हाल ही में एक पॉडकास्ट में, जिसे राज शामानी होस्ट कर रहे थे, धोनी ने अपने बचपन की बातें दिल से साझा कीं। उन्होंने रांची में बिताए अपने शुरुआती दिनों को याद किया और बताया कि कैसे उनके पिता की सख्त निगरानी में उनका बचपन बीता। जहां आईपीएल 2025 में धोनी अभी भी चेन्नई सुपर किंग्स के लिए शानदार खेल दिखा रहे हैं, वहीं उनकी ये दिल छू लेने वाली बातें भी लोगों का दिल जीत रही हैं।
एक रेजिमेंटल बचपन: जहाँ हर दिन भोर से शुरू होता था
धोनी ने अपने बचपन की एक ऐसी झलक दिखाई जो आज के मोबाइल और सोशल मीडिया भरे दौर से एकदम अलग थी। उन्होंने कहा, “तब ना मोबाइल फोन था, ना दिखावा और ना ही किसी तरह की असुरक्षा।” उनका दिन सुबह 5:30 बजे शुरू हो जाता था और वह अपनी तय दिनचर्या से शायद ही कभी हटते थे।
धोनी जिस कॉलोनी में रहते थे, वहीं पर स्कूल भी था, जिसने इस रूटीन को बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाई। वो स्कूल सिर्फ पढ़ाई का नहीं, बल्कि घर जैसा माहौल देने वाला था। वहाँ के शिक्षक उनके बड़े भाई को भी पढ़ा चुके थे और उनके परिवार के संस्कारों से अच्छी तरह वाकिफ थे।धोनी ने मजाक में कहा, “बदमाशी करने का कोई मौका ही नहीं था।” उनकी आवाज़ में उन पुराने, सादे दिनों की याद और उसके लिए एक तरह की कृतज्ञता साफ झलक रही थी।
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एमएस धोनी का अपने पिता के प्रति सम्मानपूर्ण भय
पॉडकास्ट का सबसे खास पल तब आया जब धोनी ने खुलकर स्वीकार किया, “पापा से बहुत डर लगता था।” यह डर किसी सजा या मार-पीट का नहीं था, क्योंकि उनके पिता कभी हाथ नहीं उठाते थे। बल्कि यह डर उनके अनुशासन, चुपचाप जताई गई उम्मीदों और उनके सख्त लेकिन शांत स्वभाव से था, जिसने धोनी पर गहरी छाप छोड़ी।
धोनी ने कहा, “वो बहुत सख्त थे, उनका अनुशासन कमाल का था। उनसे हमेशा समय पर रहने की उम्मीद की जाती थी। इसलिए आज मैं ऐसा हूं।” धोनी के खेल के अंदाज़ में भी ये बात साफ नजर आती है – उनकी कप्तानी, तैयारी और टाइमिंग हमेशा सटीक रही है। यहां तक कि जब दूसरे बच्चे कॉलोनी की दीवारें फांदकर खेलने चले जाते थे, धोनी में वह हिम्मत नहीं होती थी। उनके मन में पिता का सम्मान और डर दोनों इतना था कि शरारतें भी पीछे रह जाती थीं।
खेल के मैदान से जीवन सीखना
घर में सख्त माहौल होने के बावजूद, धोनी को असली खुशी खेल के मैदान में मिलती थी। बचपन की जो एकमात्र गंभीर प्रतिस्पर्धा उन्हें याद है, वो उनकी कॉलोनी में खेले जाने वाले क्रिकेट मैच थे। उन्होंने कहा, “अगर एक दिन हार गए, तो अगले दिन जीतना ही पड़ता था।” इन सादे लेकिन जोश से भरे मैचों ने धोनी में खेल भावना, मेहनत और सोचने की समझ पैदा की – वही बातें जो बाद में उन्हें दुनिया का बेहतरीन फिनिशर बनाती हैं।
धोनी की सबसे बड़ी खूबी उनकी विनम्रता है। जब फैन्स उनके छक्कों और जीत की तारीफ करते हैं, तब भी धोनी सादा जवाब देते हैं – “अगर मैच बिना किसी ड्रामा के जीत जाएं और मुझे बल्लेबाजी का मौका ना भी मिले, तो भी मैं खुश हूं। मैं बस चाहता हूं कि भारत जीते।” यही निस्वार्थ सोच, जो शायद उनके बचपन की परवरिश का हिस्सा है, उन्हें इस दिखावे की दुनिया में सबसे अलग बनाती है।