• गौतम गंभीर और बेन स्टोक्स का चोटिल खिलाड़ियों की जगह नए खिलाड़ी लाने के नियम पर अलग-अलग मत है।

  • मैनचेस्टर टेस्ट में पैर में फ्रैक्चर होने के बाद भी ऋषभ पंत ने बल्लेबाजी की, जिससे पता चला कि टेस्ट क्रिकेट शारीरिक रूप से कितना मुश्किल होता है।

ENG vs IND: गौतम गंभीर और बेन स्टोक्स ने टेस्ट क्रिकेट में चोट के कारण रिप्लेसमेंट नियम पर रखे अलग-अलग विचार
गौतम गंभीर और बेन स्टोक्स ने टेस्ट क्रिकेट में चोट प्रतिस्थापन नियम पर अपने विपरीत रुख सामने रखे (फोटो: X)

टेस्ट क्रिकेट, जो खेल का सबसे लंबा और मुश्किल फ़ॉर्मेट है, खिलाड़ियों को अक्सर उनकी हदों तक पहुँचा देता है। इसी वजह से चोट लगना इस खेल का एक आम हिस्सा बन गया है। हाल ही में टेस्ट मैचों में चोट लगने पर खिलाड़ी की जगह किसी और को लाने (इंजर्री सब्स्टीट्यूट) की बात को लेकर भारत के कोच गौतम गंभीर और इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स के बीच तीखी बहस हो गई है।

यह बहस तब शुरू हुई जब भारत के विकेटकीपर-बल्लेबाज़ ऋषभ पंत ने मैनचेस्टर में चौथे टेस्ट में दाहिने पैर में फ्रैक्चर होने के बावजूद हिम्मत दिखाते हुए खेलना जारी रखा। गंभीर का मानना है कि अगर कोई खिलाड़ी बुरी तरह चोटिल हो जाए, तो उसकी जगह किसी और को खेलने की इजाजत दी जानी चाहिए। इससे खिलाड़ियों की सेहत का ध्यान रखा जा सकेगा और खेल भी बराबरी का रहेगा। वहीं दूसरी तरफ, स्टोक्स इस सोच से सहमत नहीं हैं। उन्हें लगता है कि अगर ऐसा नियम आ गया, तो कुछ टीमें इसका गलत फायदा उठा सकती हैं और खेल की सच्चाई और नियमों में गड़बड़ी हो सकती है। इस मुद्दे पर अभी क्रिकेट जगत में बहस जारी है।

गंभीर ने की टेस्ट क्रिकेट में चोटिल खिलाड़ियों के लिए सब्स्टीट्यूट की माँग, पंत की बहादुरी को बताया उदाहरण

भारत के मुख्य कोच गौतम गंभीर ने टेस्ट क्रिकेट में चोट के कारण खिलाड़ियों की जगह किसी और को खेलने देने के नियम की ज़ोरदार वकालत की है। ओल्ड ट्रैफर्ड में ऋषभ पंत के घायल पैर के बावजूद मैदान पर लौटकर रन बनाने के साहसिक प्रदर्शन ने गंभीर की सोच को और मज़बूती दी।

गंभीर ने कहा कि पंत की बहादुरी काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन यह भी दिखाता है कि खिलाड़ी पर चोट के बावजूद खेलने का कितना दबाव होता है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर कोई खिलाड़ी साफ़ तौर पर गंभीर रूप से घायल है और अंपायर और मैच रेफरी इसकी पुष्टि करते हैं, तो ऐसे में सब्स्टीट्यूट खिलाड़ी को खेलने देना चाहिए।

गंभीर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,  “अगर चोट साफ दिख रही है, तो एक विकल्प देना ज़रूरी है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है, खासकर जब सीरीज़ इतनी कड़ी हो।” उन्होंने यह भी कहा कि 10 फिट खिलाड़ियों के साथ 11 खिलाड़ियों की टीम का मुकाबला करना किसी भी टीम के लिए नाइंसाफी है। उन्होंने कन्कशन और कोविड सब्स्टीट्यूट के उदाहरण देते हुए मांग की कि यही नियम गंभीर चोटों पर भी लागू होने चाहिए। गंभीर का मानना है कि ऐसा करने से खेल की प्रतिस्पर्धा भी बनी रहेगी और खिलाड़ियों की सेहत की सुरक्षा भी होगी।

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बेन स्टोक्स ने मामले पर अपनी राय साझा करते हुए खामियों का संकेत दिया

इंग्लैंड के कप्तान स्टोक्स ने टेस्ट क्रिकेट में चोट के कारण खिलाड़ी की जगह किसी और को खेलने देने (सब्स्टीट्यूट) के विचार को सिरे से ख़ारिज कर दिया है। उन्होंने इसे “बहुत ही हास्यास्पद” बताया और कहा कि इससे खेल की गंभीरता और निष्पक्षता पर बुरा असर पड़ेगा। स्टोक्स का मानना है कि अगर चोट के नाम पर बदलाव की इजाज़त दी गई, तो टीमें इसका गलत फायदा उठा सकती हैं। वह कहते हैं कि मामूली सूजन या पुरानी छोटी-मोटी दिक्कतों को दिखाकर कोई भी टीम नया खिलाड़ी बुला सकती है। इससे टीम सिलेक्शन की गंभीरता खत्म हो जाएगी।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्टोक्स ने कहा: “अगर मैं एमआरआई स्कैन करवाऊं, तो भी कुछ न कुछ निकलेगा फिर तो मैं किसी को भी टीम में शामिल कर सकता हूँ।” स्टोक्स ने साफ कहा कि वह सिर्फ़ कन्कशन रिप्लेसमेंट (सिर की चोट के मामले में बदलाव) का समर्थन करते हैं, क्योंकि वह खिलाड़ी की सुरक्षा से जुड़ा होता है। लेकिन बाकी चोटों के लिए सब्स्टीट्यूट की इजाज़त देना उन्हें ठीक नहीं लगता। उनका मानना है कि चोटें क्रिकेट का हिस्सा हैं, और टीमों को उन्हीं 11 खिलाड़ियों के साथ खेलना चाहिए जिन्हें उन्होंने पहले से चुना है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो खेल की गंभीरता खत्म हो जाएगी।

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श्रेणी:: इंग्लैंड गौतम गंभीर टेस्ट मैच फीचर्ड बेन स्टोक्स भारत

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