ऑस्ट्रेलिया का वेस्टइंडीज़ टेस्ट दौरा एक तरफ़ जहां गेंदबाज़ों के शानदार प्रदर्शन से भरा रहा, वहीं बल्लेबाज़ी, खासकर टॉप ऑर्डर को लेकर चिंता बढ़ा दी है। मेहमान टीम भले ही सीरीज़ में क्लीन स्वीप के करीब हो, लेकिन ओपनर के तौर पर खेल रहे युवा खिलाड़ी सैम कोंस्टास का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। उन्होंने पिछले 40 सालों में वेस्ट इंडीज़ में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले ऑस्ट्रेलियाई सलामी बल्लेबाज़ का अनचाहा रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है।
आंकड़े कैरिबियन में सैम कोंस्टास के भयावह प्रदर्शन की कहानी बयां करते हैं
कोंस्टास का सफर एक शानदार शुरुआत से लेकर बेहद निराशाजनक दौर तक बहुत जल्दी और गंभीर रहा है। पिछले साल दिसंबर में MCG में भारत के खिलाफ जबरदस्त पारी खेलकर उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में शानदार डेब्यू किया था। लेकिन अब 19 साल के इस खिलाड़ी का वेस्टइंडीज़ दौरा लगातार नाकामी से भरा रहा है। कैरेबियाई तेज़ गेंदबाज़ों के सामने वे बार-बार संघर्ष करते दिखे।
इस दौरे की छह पारियों में कोंस्टास सिर्फ़ 50 रन ही बना पाए हैं, वो भी 8.33 की औसत से। उनके खराब फॉर्म की झलक सबीना पार्क में मिली, जहाँ वो आखिरी मैच में सिर्फ़ पांच गेंदों पर बिना खाता खोले आउट हो गए। यह प्रदर्शन 1984 के बाद वेस्टइंडीज़ में किसी भी ऑस्ट्रेलियाई ओपनर का सबसे खराब श्रृंखला औसत बन गया है। इतिहास में अब तक सिर्फ़ चार ऑस्ट्रेलियाई ओपनर एलेक बैनरमैन, रिक डार्लिंग, वेन फिलिप्स और कीथ स्टैकपोल ही छह पारियों की किसी सीरीज़ में उनसे भी कम रन बना पाए हैं।
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ऑस्ट्रेलिया का शीर्ष क्रम उथल-पुथल में
कोंस्टास की लगातार नाकामी ने ऑस्ट्रेलिया के शीर्ष क्रम की बड़ी चिंता को सामने ला दिया है। चयनकर्ताओं ने मार्नस लाबुशेन की जगह उन्हें ऊपर बल्लेबाज़ी के लिए भेजने का जो फैसला किया था, वो कामयाब नहीं रहा। वहीं अनुभवी सलामी बल्लेबाज़ उस्मान ख्वाजा भी फॉर्म में नहीं दिखे और छह पारियों में सिर्फ़ 117 रन ही बना सके।
ऊपरी क्रम में इस तरह की अस्थिरता के चलते ऑस्ट्रेलिया की बल्लेबाज़ी कमजोर पड़ी, भले ही टीम ने सीरीज़ में जीत हासिल की हो। कोंस्टास का खेलने का तरीका जिसमें आक्रामकता और उनका निजी अंदाज़ शामिल है, भी चर्चा का विषय बन गया है। खासकर तब जब यह सामने आया कि वे जमैका में अपने निजी बैटिंग कोच के साथ आए थे। यह कदम आमतौर पर टीम भावना वाले खेल में थोड़ा अलग माना जाता है।
हालांकि, इससे उनकी मेहनत और सुधार की चाह ज़रूर दिखती है, लेकिन इसने यह सवाल भी खड़े कर दिए हैं कि युवा खिलाड़ियों को सबसे ऊँचे स्तर पर कैसे सही तरीके से तैयार किया जाए। माना जा रहा है कि भले ही एशेज के लिए उनकी जगह अभी तय न हो, लेकिन चयनकर्ता उन्हें हालात के मुताबिक ढलने और खुद को साबित करने का पूरा मौका देंगे।