भारतीय क्रिकेट टीम का आधिकारिक स्पॉन्सर बनना किसी भी कंपनी के लिए मार्केटिंग की सबसे बड़ी सफलता मानी जाती है। जब स्टेडियम दर्शकों से भरे होते हैं और करोड़ों लोग टीवी और मोबाइल पर मैच देख रहे होते हैं, तब खिलाड़ियों की जर्सी पर स्पॉन्सर का लोगो दिखना किसी ब्रांड के लिए जबरदस्त पहचान का मौका होता है।
लेकिन 2001 से अब तक, जो भी कंपनियाँ इस खास जगह पर रहीं, वो किसी न किसी विवाद में फंसती गईं—कभी कानूनी झगड़ों में, कभी सरकारी जांच में, तो कभी गंभीर आर्थिक मुश्किलों में। अब इस लिस्ट में नया नाम जुड़ा है ड्रीम11 का, जो असली पैसे वाले ऑनलाइन गेम्स पर बनते सख्त कानूनों की वजह से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
ड्रीम11 और अन्य फैंटेसी गेमिंग ऐप्स का भारत सरकार के साथ विवाद
भारत के सबसे बड़े फैंटेसी गेमिंग प्लेटफॉर्म ड्रीम11 ने 2023 में भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी पर सामने स्पॉन्सर बनने की जिम्मेदारी संभाली। इस दौरान कंपनी का वैल्यूएशन तेजी से बढ़ रहा था। ड्रीम11 का मॉडल ऐसा है जिसमें यूज़र्स असली खिलाड़ियों की वर्चुअल टीमें बनाते हैं और उनके प्रदर्शन पर पैसे लगाते हैं। इसी मॉडल की वजह से ड्रीम11 को यूनिकॉर्न कंपनी का दर्जा मिला।
लेकिन 21 अगस्त 2025 को संसद ने एक नया ऑनलाइन गेमिंग कानून पास किया, जो असली पैसों वाले गेमिंग ऐप्स पर रोक लगाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून लागू हो जाएगा और ड्रीम11 का मुख्य बिजनेस पूरे देश में गैरकानूनी हो जाएगा। यह नियम कंपनी के लिए बड़ा झटका है। इससे पहले, 2025 की शुरुआत में, ड्रीम11 पर करीब 1,200 करोड़ रुपये की जीएसटी चोरी का आरोप लगा था। हालांकि कंपनी ने उस नोटिस का विरोध किया और राहत भी मिली, लेकिन टैक्स विभाग की नई जांच की आशंका अब भी बनी हुई है।
टीम इंडिया के जर्सी प्रायोजकों का ऐतिहासिक उत्थान और पतन
- सहारा (2001-2013): सबसे लंबे दौर का अंत पतन में हुआ

सहारा समूह का भारतीय क्रिकेट टीम के साथ 12 साल का जुड़ाव बीसीसीआई के इतिहास में सबसे लंबा स्पॉन्सरशिप रहा है। एक समय ऐसा था जब सहारा का नाम भारतीय क्रिकेट से इस कदर जुड़ गया था कि यह ब्रांड खेल का दूसरा नाम बन गया था। इसकी वित्तीय ताकत और बाजार में बड़ी पहचान थी।
लेकिन इस चमक के पीछे एक बड़ा घोटाला छिपा था। सहारा पर आरोप लगे कि उसने संदिग्ध निवेश योजनाओं के ज़रिए करीब 24,000 करोड़ रुपये इकट्ठा किए। इसको लेकर सहारा और बाजार नियामक सेबी के बीच कई साल तक कानूनी लड़ाई चली। 2014 में, जब कंपनी के संस्थापक सुब्रत रॉय अदालत की अवमानना के मामले में गिरफ्तार हुए, तो यह सहारा समूह के गिरते दौर की सबसे बड़ी निशानी बन गई। जो साझेदारी क्रिकेट इतिहास की सबसे मज़बूत मानी जाती थी, वह आखिरकार लालच और नियमों की अनदेखी की एक चेतावनी भरी कहानी बनकर रह गई।
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- स्टार इंडिया (2014-2017): एक मीडिया दिग्गज की फीकी पड़ती चमक

जब स्टार इंडिया ने सहारा की जगह ली, तो यह फैसला काफी सही और सहज लगा। डिज़्नी के समर्थन वाली इस कंपनी के पास पहले से क्रिकेट प्रसारण के अधिकार थे, रिकॉर्ड तोड़ दर्शक थे, और हॉटस्टार के ज़रिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी पकड़ मजबूत थी। लेकिन कुछ ही समय बाद मुश्किलें दिखने लगीं। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने स्टार पर एकाधिकार (मोनोपॉली) जैसे व्यवहार की जांच शुरू कर दी। वहीं, हॉटस्टार को भी लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच अपने बढ़ते यूज़र बेस को मुनाफे में बदलने में दिक्कत हो रही थी।2017 में जब स्टार का जियो के साथ विलय हुआ, तो इसकी अलग पहचान कमजोर पड़ गई। जो कंपनी कभी भारत की सबसे ताकतवर मीडिया कंपनियों में से एक थी, वह अब एक बड़ी टेलीकॉम और ब्रॉडकास्टिंग कंपनी के केवल एक हिस्से के रूप में रह गई।
- ओप्पो (2017–2020): स्मार्टफोन और अल्पकालिक गौरव

2017 में, ओप्पो ने ₹1,079 करोड़ के बड़े प्रायोजन सौदे के साथ भारतीय स्मार्टफोन बाज़ार में धूमधाम से कदम रखा। उसका मकसद था ऐप्पल और सैमसंग जैसे बड़े ब्रांडों को पीछे छोड़ना। कुछ समय तक टीम इंडिया की जर्सी पर ओप्पो का नाम छपा रहा, जिससे यह ब्रांड देश के हर कोने में पहचान बनाने में कामयाब हुआ।
लेकिन यह चमक ज्यादा देर तक नहीं टिक सकी। नोकिया और इंटरडिजिटल जैसी कंपनियों के साथ पेटेंट को लेकर कानूनी झगड़ों में ओप्पो फंस गया। साथ ही, भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव की वजह से चीनी ब्रांडों को लेकर लोगों का भरोसा भी कम होने लगा। 2020 तक हालात ऐसे हो गए कि क्रिकेट के ज़रिए मिली शोहरत को ओप्पो ठोस बिक्री में नहीं बदल पाया। नतीजतन, उसने भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी पर अपना नाम छोड़ दिया और इस कीमती मार्केटिंग प्लेटफॉर्म से पीछे हट गया।
- बायजूस (2020-2022): एडटेक का तीव्र उदय और सर्पिल

अगर सहारा लंबे समय तक टिके रहने का और ओप्पो बड़ी उम्मीदों का प्रतीक था, तो बायजूस भारत के स्टार्टअप उछाल का सबसे बड़ा चेहरा बना। 2020 में, जब महामारी के चलते ऑनलाइन पढ़ाई तेजी से बढ़ी, तब बायजूस ने अपने सबसे ऊंचे समय पर भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी का प्रायोजन संभाला। उस समय कंपनी का मूल्यांकन 22 अरब डॉलर तक पहुंच गया था।
लेकिन बायजूस का तेज़ी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलाव उसकी अंदरूनी वित्तीय परेशानियों को छिपा रहा था। कंपनी का घाटा लगातार बढ़ता गया और समय पर भुगतान करने में भी दिक्कतें आने लगीं। 2022 में, उस पर दिवालिया होने की याचिकाएं दायर हुईं। 2023 में बीसीसीआई ने ₹158 करोड़ के बकाया प्रायोजन शुल्क को लेकर बायजूस को राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) में घसीटा। जो कंपनी कभी भारत की नई सोच और आधुनिक उद्यमिता का उदाहरण मानी जाती थी, वह धीरे-धीरे कर्ज, कर्मचारियों की छंटनी और कानूनी झगड़ों के बीच ढह गई।
- ड्रीम11 (2023–वर्तमान): कल्पना अनिश्चित वास्तविकता में बदल जाती है

ड्रीम11 के फैंटेसी-स्पोर्ट्स प्लेटफॉर्म ने 2023 में भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी का प्रायोजन संभालकर फैंस की भागीदारी को एक नया रूप दिया। लेकिन इसका मुख्य कारोबार असल पैसे वाले गेमिंगअब 2025 में पास हुए एक नए कानून की वजह से खतरे में है, जो पेड-एंट्री गेमिंग ऐप्स पर पूरी तरह से रोक लगाता है। ड्रीम11 को 1,200 करोड़ रुपये के जीएसटी टैक्स की मांग का भी सामना करना पड़ रहा है और नई टैक्स जांचों की भी आशंका बनी हुई है। ऐसे में, ड्रीम11 का यह बड़ा जर्सी प्रायोजन सौदा अब एक फायदा होने की बजाय एक बोझ जैसा दिखने लगा है, क्योंकि इसका मुख्य कमाई का तरीका कानून के चलते बंद हो सकता है।